*आज हिमालय की चोटी से,*
*ध्वज भगवा लहराएगा ।*
*जाग उठा है हिन्दू फिर से,*
*भारत स्वर्ग बनाएगा ॥ध्रु॥*
इस झंडे की महिमा देखो,
रंगत अजब निराली है ।
इस पर तो ईश्वर ने डाली
सूर्योदय की लाली है ।
प्रखर अग्नि में इसकी पड़,
शत्रु स्वाहा हो जाएगा ॥१॥
इस झंडे को चन्द्रगुप्त ने
हिन्दू-कुश पर लहराया ।
मरहटों ने मुग़ल-तख़्त को
चूर-चूर कर दिखलाया ।
मिट्टी में मिल जाएगा
जो इसको अकड़ दिखाएगा ॥२॥
इस झंडे की खातिर देखो
प्राण दिए रानी झांसी ।
हमको भी यह व्रत लेना है,
सूली हो या हो फांसी ।
बच्चा-बच्चा वीर बनेगा,
अपना रक्त बहाएगा ॥३॥
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