स्वतंत्रता को सार्थक
स्वतंत्रता को सार्थक करने
शक्ति का आधार चाहिए।
भक्ति का आधार चाहिए॥
स्वर्गगंगा भी अरे भगीरथ
यत्नो से भूतल पर आती।
किन्तु शीश पर धारण करने
शिवशंकर की शक्ति चाहिए॥१॥
अमृत को भी लज्जित करती
समर्थ होकर प्राकृत वाणी
उन्मेषित करने सौरभ को
तुलसी की रे भक्ति चाहिए॥२॥
शीश कटाकर देह लड़ी थी
कौंडाणा पर गाज गिरी थी
कण-कण में चेतनता भरने
छत्रपती की स्फूर्ति चाहिए॥३॥
हिमगिरि शिखरों के कन्दर में
घुसे पड़े जो नाग भूमि में
उन सर्पों का मर्दन करने
कालियान्त की नीति चाहिए॥४॥
No comments:
Post a Comment