*जीवन दीप जले*
जीवन दीप जले
जीवन दीप जले
ऐसा सब जग को ज्योती मिले
जीवन दीप जले.....
इसी सत्यपर रामचंद्र ने
राजपाट सब त्याग दिया
छोड अवध माया की नगरी
वानन को प्रस्थान किया
सुख-वैभव को लाथ मारकर
कष्टों का सहवास किया
षडरस व्यंजन त्याग जंगली
फल खाये और नीर पिया
स्वयम् कंटको को चुमा
औरों के कंटक दूर किये
जन्म सफल है उस मानव का
जो परहीत ही सदा जिये
दुसरों को सुरसरी देणे जो
हिमगिरी सा चुपचाप जले
जीवन दीप जले
जीवन दीप जले
ऐसा सब जग को ज्योती मिले
जीवन दीप जले......
रसिक शिरोमणी कृष्णचंद्र ने
वृंदावन को बिसराया
छोड बिलखते ग्वाल-बाल सब
निर्मोही ही कहलाया
किंतू लोक कल्याण मार्ग ही
केवल उसने अपनाया
वही गोपियों का नटवर
फिर योगीराज था कहलाया
गीता की हर पंक्ती पंक्ती में
अर्जुन को वे समझाते
आगे बढ नरसिंह जगत के
झुटे हैं रिश्ते नाते
अतिविस्तृत कर्तव्य मार्ग है
हर मानव इस ओर चले
जीवन दीप जले
जीवन दीप जले
ऐसा सब जग को ज्योती मिले
जीवन दीप जले.....
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