Sunday, August 25, 2019

जल रही युगों से जो शहीद की समाधि पर

जल रही युगों से जो शहीद की समाधि पर
न बुझ सकी न मिट सकी ये देश की मशाल है।
क्रुर अन्धकार था
वज्रका प्रहार था
रुद्र के विनाश में घोर अट्टहास में
ह्रास में विकास में क्रुध्द मृत्युपाश में
खिल रही जो राह पर कण्टकों की छाँह पर
डर सकी न कँप सकी ये दिव्य दीप ज्वाल है
सो रहा शहीद है
ये अनन्त नींद है
शेष किन्तु जोश है शेष क्रुध्द रोष है
झर चुका पराग है शेष तप्त आग है।
भग्न सी समाधि पर क्षुब्ध शेष राख पर
ये शहीद के विशुध्द रक्य का उबाल है
एक राष्ट्र भावना
एक ध्येय कल्पना
मौन मूक वंदना राष्ट्र की उपासना
एक मात्र साधना एकमेव अर्चना।
एक पन्थ एक गान एक राष्ट्र का निशान
आज ऐक्य भाव क्षुद्र दीप का सवाल है
आज स्नेह ढाल दो
दीप को संभाल दो
धर्म -कर्म त्याग से प्राण के पराग से
बुध्दि युक्ति शक्ति से एक राष्ट्र-भक्ति से।
एक दीप से अनेक राष्ट्र दीप बाल दो
जल सके विरामहीन ये शिखा विशाल है॥

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