यह कल कल
यह कल कल छल छल बहती
क्या कहती गंगा धारा ?
युग युग से बहता आता
यह पुण्य प्रवाह हमारा ।धृ|
हम ईसके लघुतम जलकण
बनते मिटते है क्षण क्षण
अपना अस्तित्व मिटाकर
तन मन धन करते अर्पण
बढते जाने का शुभ प्रण
प्राणों से हमको प्यारा ।१|
ईस धारा में घुल मिलकर
वीरों की राख बही है
ईस धारामें कितने ही
ऋषियों ने शरण ग्रही है
ईस धाराकी गोदि में,
खेला ईतिहास हमारा ।२|
यह अविरल तप का फल है
यह राष्ट्रप्रवाह प्रबल है
शुभ संस्कृति का परिचायक
भारत मां का आंचल है
हिंदुकी चिरजीवन
मर्यादा धर्म सहारा ।३|
क्या ईसको रोख सकेंगे
मिटनेवाले मिट जायें
कंकड पत्थर की हस्ती
क्या बाधा बनकर आये
ढह जायेंगे गिरि पर्वत कांपे
भूमंडल सारा ।४|
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