देव यह आशीष
देव यह आशीष शुभ दो ॥
चल सकें बाधा अनेकों।
मातृ-पद में लीन तन-मन
भावना विकसित वरण दो
देव यह आशीष शुभ दो ॥१॥
क्षुद्र जग की वासनाएँ
स्वार्थ मूलक भावनाएँ
दूर हों जीवन सफल हो
बस यही गति यही मति दो॥
देव यही आशीष शुभ दो ॥२॥
मातृ-सेवा के व्रती हम
निज बनें सबको बनायें।
देश का सौभाग्य जागे
सिध्द वह संजीवनी दो॥
देव यह आशीष शुभ दो ॥३॥
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