जय जयकारी माता वसुधा अष्टभुजा भगवती
दसो दिशा में फैल रही है अनुरुपा सिमित।।धृ।।
वेदपुरातन परपंरा की नवपल्लव शाखा
सत्यधम र्जयी कालभाल पर सुभगलाल रखेा
नवीन युग के अरुणोदय की ज्योतमर्य आरती।।१।।
अबला नारी कभी न थी पर जगने मान लिया
सबला बन कर निज शिक्त का जग को ज्ञान दिया हमको अब तो करनी होगी समाज मन जागृती।।२।।
संस्कारों की नीव मातृका कु टुंब संबोिधनी
विर प्रसवा जननी है हम समाज संजीवनी
मनुज वंश का तारण करती हम है भागीरथी।।३।।
आखों के संमुख ध्येय हमारा स्थीर ह
अनुशािसत मन में समरसता का स्वर है
अब चलें साथ में उभय करों में ध्वज है
चाहे कितनी बाधाए हो जय में हो पिरणती।।४।।
Sunday, August 25, 2019
जय जयकारी माता वसुधा अष्टभुजा भगवती
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