जब की नगाडा बज ही गया है
जब की नगाडा बज ही गया है, सरहद पर शैतान का
नक्षे पर से नाम मिटा दो, पापी पाकिस्तान का ॥ धृ ० ॥
कभी इधर से कभी उधर से घुसता है गुर्राता है
डल झेलम की मधु लहरों में गंदे पांव लगाता है
केसर पर बारूद छिड़कता अँगारे बरसाता है
न्यौता देता महाकाल को अपनी मौत बुलाता है
भूल गया है हरब-हरब जब खुद ही पाक कुराण का ॥ १ ॥
बोल दिया है धावा तो फिर शेरों कदम हटाना मत
तोपों के प्रलयंकर जबड़े तुम वापस पलटना मत
सिद्धांतों की परिभाषा में अपने को उलझाना मत
धूल उड़ा देना पिंडी की पलभर दया दिखाना मत
फिर कब ऐसा वक्त मिलेगा लहू के भुगतान का ॥ २ ॥
अमन अहिंसा पंचशील के सरगम कुछ दिन गाओ मत
भड़क उठा है जर्रा तो फिर भड़की आग बुझाओ मत
भरी फसल की तरह काट दो जिन्दा एक बचाओ मत
लाख बार मर जाओ लेकिन माँ का दूध लजाओ मत
हिन्दुकुश पर गाडके आना झंडा हिन्दुस्थान का ॥ ३ ॥
खुलकर दो दो हाथ दिखाना संघानी तलवारों के
हथियारों से उत्तर देना दुश्मन के हुंकारों के
छाँट छाँट कर मुंड काटना घुसपैठी हत्यारों के
हमें भेट में देना माथे जयचंदो गद्दारों के
गिनगीनकर बदला लेना जननी के अपमान का ॥ ४ ॥
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