अंतर्मन के भाव संजोकर
राष्ट्रदेव का ध्यान करें।
अपना तन-मन अपना जीवन
इस वेदी पर दान करें॥
जिसकी रक्षा करने को ही
देवों के अवतार हुए।
जिसके पावन कर्म देवता
संस्कृति के आधार हुए।
जिसकी पूजा की वीरों ने
सदियों अपने प्राणों से।
माँ बहिनों ने शिशु बालों ने
निज अनुपम बलिदानों से।
इसको अजर अमर करने को
फिर सशक्त बलवान बनें॥१॥
सबसे उर्वर इसकी धरती
सबसे शुचि इसका पानी।
अन्नपूर्णा लक्ष्मी है यह
सिंह वाहिनी मर्दानी।
विविध अन्न फल फूल यहाँ पर
उगते आये सदा अपार।
स्वर्ण रजत हीर मोती की
यह वसुधा अक्षय आगार।
अपने श्रम अपने उद्यम से
फिर इसको धनवान करें॥२॥
ऊँच-नीच के भेद भुला
भाई -भाई सब एक रहें।
अनुशासन से ह्रदय सींचकर
पौरुष के अतिरेक बनें।
राष्ट्र हेतु सर्वस्व समर्पण
को जनमन तैयार रहे।
ह्रदय-ह्रदय से राष्ट्र भक्ति की
बहती अविरल धार रहे।
संगठनों से सारे जग में
फिर इसको छविमान करें॥३॥
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