Sunday, August 25, 2019

शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है

शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है ॥धृ॥
प्रेम जो केवल समर्पण भाव को ही जानत है
और उसमे ही स्वयम् की धन्यता बस मानता है
दिव्य ऐसे प्रेम मे ईश्वर स्वयम् साकार है ॥१॥
विश्व जननी ने किया वात्सल्य से पालन हमारा
है कृपा इसकी मिला है प्राण तन जीवन हमारा
भक्ति से हम हो समर्पित बस यही अधिकार है ॥२॥
जाती भाषा प्रान्त आदी वर्ग भेदों को मिटाने
दूर अर्थाभाव करने तम अविद्या को हटाने
नित्य ज्योतिर्मय हमारा हृदय स्नेहागार है ॥३॥
कोटि आँखो से निरन्तर आज आँसू बह रहे है
आज अनगिन बन्धु दुःसह यातनाए सह रहे है
दुख हरे सुख दे सभी को एक यह आचार है ॥४॥

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