भरतवर्ष के स्वत्वबोध का शंखनाद ललकार रहा।
हिंदू का विश्वास जगा, हिंदुत्व का विश्वास जगा।
हम जाएंगे हर एक बस्ती, घर घर दीप जलाएंगे।
व्यक्ती व्यक्ती को जगाजगाकर, हिंदु तत्व से जोडेंगे।
पूर्ण करेंगे स्वप्नोंको।
जागृत करके अपनोंको।
राष्ट्र के हर घर भवन में स्वत्व का आलक जगा।
हिंदू का विश्वास जगा..।।१।।
अपना आलस जला रहें हम, विजय ध्वजा को बढा रहें।
अपना साहस बढा रहे हम, स्वार्थ प्रतिष्ठा जला रहें।
निर्भय होकर चलतें है।
हिंदू का डर भगाते है।
वर्तमान की मांग पर संघटन शौर्य का ज्वार उठा।
हिंदु का विश्वास जगा..।।२।।
व्यक्ति व्यक्ती को जोडेंगे हम, समरसता को लाएंगे।
अपने मन के भेदोंको हम, पूर्ण जलाकर मानेंगे।
मां भारती जयगान हो।
मंगलमय शुभ रचना हो।
कोटी कोटी संतानोंके बंधुत्व का अभियान चला।
हिंदु का विश्वास जगा..।।३।।
नगर ग्राम हर वस्ती वस्ती, शाखा जाल बिछाएंगे।
आक्रमणोंके षड्यंत्रोंसे नौका पार लगाएंगे।
व्यक्ती व्यक्ती संस्कार करें।
लोकमत परिष्कार करें।
संघटीत शक्ती के बलपर विश्व विजय विश्वास जगा।
हिंदू का विश्वास जगा..।।४।।
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