है वही पुरुषार्थी
है वही पुरुषार्थी जो संघ पथ चलता रहे || धृ
शील धिरज स्नेह के रथ बैठ कर बढता रहे
है वही पुरुषार्थी जो संघ पथ चलता रहे
सौख्य में फूले नहीं विपदा पदे रोवे नहीं
कंटकों के मार्ग में भी धैर्य बल खोवे नहीं
शत्रू जिसका डेख साहस (हाथ बस मलता रहे) ||… है वही
चूमती हैन सफलताए चरण ऐसे वीर की
भरी कभी खाते न जो चमकती शमसेर की
संघ के उत्थान हित नित (नव चयन करता रहे) ||… है वही
मान-औ-अपमान सब कुछ हिन्दु हित स्वीकार हो
हिन्दु का हित हो जहां तो मौत भी स्वीकार हो
है यहा वट व्रुक्षा अपना (फूलता फलता रहे) ||… है वही
जागरण के गीत गाना ही सदा भाता जिसे
काल का दुष्चक्र किन्चित छू नही पाता जिसे
जो तिमिर को फाडता (दीपक जला हरता रहे) ||…है वही
शुद्ध भेजें ग़लतियाँ बहुत हैं जी
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