धन्य हे युगपुरुष केशव धन्य तेरी साधना।
कोटि कंठों में समाहित राष्ट्र की आराधना॥
राष्ट्र का दिनकर छिपा छाई अमावस की निशा
दासता की श्रृंखला मे भटकते हम थे दिशा
चक्रव्यूह में जा फंसी थी राष्ट्र की तेजस्विता
अस्मिता बाधित रही औ सुप्त सारी कामना॥
शक्ति के नव जागरण का वर्ष का शुभ दिन प्रथम
प्रखर दिनकर सा उदित तुम मेटने को गहन तम
मातृ भू की अर्चना का ह्रदय में संकल्प लेकर
वीर विक्रम सा किए तुम विजय की प्रस्तावना॥
छत्रपति की प्रेरणा से राष्ट्र पौरुष को जगाकर
शालिवाहन सा सतत नव संगठन का भाव लाकर
मेंट की गत जाति भाषा प्रान्त की सब रुढ़ियाँ
सुप्त हिन्दू राष्ट्र को जागृत किया कर साधना॥
स्वप्न जो उर में संजोये आज वह साकार ढलता
राष्ट्र नव निर्माण का है अब आधार बनता
विविध पथ से बढ़ रहे हैं ध्येय के तेरे उपासक
सत्य हिगी आपकी अब चिर प्रतीक्षित कामना॥
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