सेवा है यज्ञकुन्ड
समिधा सम हम जलें
ध्येय महासागर में
सरित रूप हम मिलें ।
लोक योगक्षेम ही
राष्ट्र अभय गान है
सेवारत व्यक्ती व्यक्ती
कार्य का ही प्राण है ॥धृ॥
उच्च नीच भेद भूल
एक हम सभी रहें
सहज बन्धूभाव हो
राग-द्वेष ना रहे
सर्वदिक् प्रकाश हो
ज्ञानदीप बाल दो
चरण शीघ्र द्रुढ बढे
ध्येय शिखर हम चढे॥१॥
मुस्कुराते खिल उठे
मुकुल पात पात में
लहर लहर सम उठे
हर प्रघात घात में
स्तुति निन्दा लाभ लोभ
यश विरक्ती छाँव से
कर्मक्षेत्र मे चले सहज
स्नेह भाव से ॥२॥
दीन हीन सेवा ही
परमेष्टी अर्चना
केवल उपदेश नही
कर्मरूप साधना
मन वाचा कर्म से
सदैव एक रूप हो
शिवसुन्दर नव समाज
विश्ववन्द्य हम गढे ॥३॥
Saturday, August 24, 2019
सेवा है यज्ञकुन्ड समिधा सम हम जलें
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment