भारती की चीर विजय का नाद नभ में भर रहा।
ध्वनी प्रणव का धिनीनी धिक धिक्
प्रिय शुभंकर बज रहा
केसरी ध्वज की प्रभा से
मुक्त अंबर सज रहा...
युवकगण कटिबद्ध होकर..
जलधी में बिंदुत्व खो कर
संचलन से नभ निरंतर...
कंप कंपीत कर रहा....
गर्व से जयगीत मां का
पुत्र उसके गा रहे...
समय से संप्राप्त हो कर
हर्ष से बली जा रहे..
एक इनकी विजयगीता
एक इनकी वीरगाथा...
एक कंपन है ह्रदय में
एक इनका स्वर रहा...
जलधीतक फैला धरातल
सर्वदा निजतंत्र हो...
देवतात्मा गीरी हिमालय
सर्वदा भयमुक्त हो..
इस प्रतिज्ञा को किये
दृढभूजाओ में बल लिए...
संघटन का मंत्र इनके
ह्रदय में संचर रहा...
भारती की चीरविजय का
नाद नभ में भर रहा...
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