जाग उठा है आज
जाग उठा है आज देश का
जाग उठा है आज देश का वह् सोया अभिमान
प्राची की चंचल किरणों पर आया स्वर्ण विहान
स्वर्ण प्रभात खिला घर घर में जागे सोये वीर
युद्ध् स्थल में सज्जित होकर बढे आज रनधीर
आज पुन: स्वीकार किया है असुरों का आह्वान ।। जाग
सहकर अत्याचार युगों से स्वाभिमान फिर जागा
दूर हुआ अज्ञान पार्थ का धनुष बाण फिर जागा
पान्चजन्य ने आज सुनाया संस्कृती को जय गान ।। जाग
जाग उठी है वानर सेना जाग उठा वनवासी
चला उदधि को आज बांधने ईश्वर का विश्वासी
दानव् की लंका पर फिर से होता है अभियान ।। जाग
खुला शंभू का नेत्र आज फिर वह प्रलयंकर जागा
दानव की वे लपटें जगीं वह शिव शंकर जागा
ताल ताल पर होता जाता पापों का अवसान ।।।। जाग
उपर हिम से ढकी खडी है वे पर्वत मालायें
सुलग रही हैं भीतर भीतर प्रलयंकर ज्वालायें
उन लपटों में दिख रहा है भारत का उत्थान ।। जाग
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