Sunday, August 25, 2019

तंत्र है नूतन भले ही चिर पुरातन साधना

तंत्र है नूतन भले ही

तंत्र है नूतन भले ही चिर पुरातन साधना।
संघ में साकर अनगिन है युगों की कल्पना॥
विश्व गुरु यह राष्ट्र शाश्वत सूत्र में आश्वस्त हो।
सभ्यता का हो निकेतन यह सुमंगल भाषना॥१॥
ज्ञान श्रद्घा कर्म तीनों मिल समन्वित रुप हो।
वेद से आई अखंडित हिन्दु की ध्रुव धारणा॥२॥
तीन गुण नव रस सुशोभित सप्त रंगों का धनुष।
ऐक्य अरु वैविध्य की है नित्य नूतन सर्जना॥३॥
सूर्यवंशी चक्रवर्ती अग्निमुख ऋषि त्याग धन।
सच्चिदानन्द -रुपिणी हैं हिन्दु की परियोजना॥४॥
विश्व व्यापी सभ्यता हो सर्वहित का पात्र बन।
पूर्ण वैभव लें सतत ही मातृ पद युग वन्दना॥५॥

No comments:

Post a Comment