Tuesday, September 3, 2019

विश्वमंगल साधना के

विश्वमंगल साधना के

विश्वमंगल साधना के
हम है मौन पुजारी
आराधक है विश्वशांती के
अक्षय टेक हमारी ॥धृ॥
विविध पंथ मत दर्शन शैली
भाषा रित विधान प्रणाली
एक सच्चिदानंद रूप की
भव्य सृष्टी यह सारी ॥१॥
अर्थ काम के पीछे सब
नर भाग रहे है अंधे होकर
धर्म भावसे दूर करेंगे
विकृती स्वेच्छाचारी ॥२॥
बलहीनोंको नही पूछता
बलवानों को विश्व पूजता
संघशक्ती युग सत्य आज है
मानवता हितकारी ॥३॥
संघशक्ती यह विजयशालिनी
खल संहारक धर्मरक्षिणी
नये विश्व का सृजन करेगी
सबजन मंगलकारि ॥४॥

स्वयं प्रेरणा से माता की

स्वयं प्रेरणा से

स्वयं प्रेरणा से माता की
सेवा का व्रत धारा है
सत्य स्वयमसेवक बनने का
सतत प्रयत्न हमारा है||धृ||
देश भक्ति अधिकार जन्म से
जागृत हो कर जाना है
धर्मं भूमि सूत हिंदू हूँ मैं
हमने यहाँ पहिचाना है
जीवन मरण सदा क्षण क्षण में
यहाँ स्वदेश ही प्यारा है ||
प्यार नहीं व्यापार हमारा
पुरस्कार की चाह नहीं
उपहारों का मोह नहीं
जय हारों की परवाह नहीं
अंहकार को दूर रखेंगे
प्रभु का सदा सहारा है ||
नित्य नियम से शाखा जाते
गंगा गोते खाने को
संस्कारों से पल पल अपने
तन मन को पुलाकाने को
आत्मा विजय के हेतु स्वयं का
यहाँ अनुशासन सारा है ||
हम समाज के चेतन प्रहरी
घर घर पहुँच जगायेंगे
गली गली में नगर गाँव में
दीप से दीप जलाएंगे
हिंदू धर्मं हो वैभव पूरित
जीवन लक्ष्य विचारा है||

भारत देश महान अमुचा

भारत देश महान अमुचा

भारत देश महान अमुचा
भारत देश महान
स्फूर्ती देतिल हेच आमुचे
राम कॄष्ण हनुमान॥धृ॥
व्यासादिक मुनिवरे गाइला
संत महंते पावन केला
प्रताप शिवबाने गाजविला
सुखसमृध्दिनिधान॥१॥
चिंतनि इतिहासाच्या दिसती
असंख्य नरवीरांच्या ज्योती
गाता स्वतंत्रतेची किर्ती
घडवू नव संतान॥२॥
धर्मासाठी जीवन जगणे
समष्टिमध्ये विलीन होणे
सीमोल्लंघन दुसरे कसले
यासाठी बलिदान॥३॥

Sunday, August 25, 2019

ध्येय पथावर सतत चालतो वीरव्रती आम्ही

ध्येय पथावर सतत चालतो वीरव्रती आम्ही
वैभवशाली भरतभूमीला ध्यातो अंतरयामी ।।

प्रतिदिन आमुची शक्तिसाधना गुरूवर ध्वज भगवा
वादळातही खडतर मार्गी तेवत ज्ञान दिवा
सत्चारित्रे क्षण क्षण लावू भगवंताच्या कामी ।।

चित्तामध्ये चिंतन करूया का आम्ही हरलो
ऋषीमुनींच्या देशामध्ये हीनदीन झालो
आजपुन्हा तो वन्ही चेतवू उजळू ज्योतीतमी ।।

कुणी न मोठा नाही छोटा आम्ही सारे बंधू
जाती पंथ भाषा पक्षातून आम्ही सगळे हिंदू
श्रेष्ठ आमुचे पूर्वज आम्हा हीच पूण्यभूमी ।।

बंधू-बंधू हे विकसित करूनी एकसूत्री बांधुनी
उदात्तमंगल ते ते घडवू हीन सर्व जाळुनी
तेजोपासक अमृतसूत आम्ही पुरूषार्थी विक्रमी ।।

हिन्दूजनांची सज्जनशक्ती सर्वांगांनी बहरू दे

हिन्दूजनांची सज्जनशक्ती
सर्वांगांनी बहरू दे
शाखा-शाखांवर भगवद्ध्वज
युवाबळाने लहरू दे

समजत नाही इतिहासातील
सुवर्णयुग सरले कैसे
उदासीनता मतभेदांचे
दुर्गुण हे शिरले कैसे
उपेक्षिली समता ममता तर
लुटती परके समजू दे
शाखा-शाखांवर भगवद्ध्वज
युवाबळाने लहरू दे

जे नशिबाचे गुलाम त्यांच्या
ऐहिक उर्मी मावळती
खड्ग येथले परास्त होई
उदिम व्यापारा गळती
उद्यम व्यापारांचे वैभव
जनामनान्ततरी पसरू दे
शाखा-शाखांवर भगवद्ध्वज
युवाबळाने लहरू दे

हिन्दू सोशिक आणि समंजस
सात्विकता त्यांची वृत्ती
आक्रमकांच्या हिंस्र चढ़ाया
रोखन्यास अपुरे पड़ती
सत्वापाठी क्षात्रबळाचे
संघकवचही संचरू दे
शाखा-शाखांवर भगवद्ध्वज
युवाबळाने लहरू दे

दुनिया बळवंतांची अंकीत
बळ युवकांचे यशदायी
निःस्पृह सज्जन एकवटावे
तर वैभव दुष्कर नाही
जगज्जयी भारतभूमिचे
स्वप्न अंतरी उतरु दे
शाखा-शाखांवर भगवद्ध्वज
युवाबळाने लहरू दे

हिन्दूजनांची सज्जनशक्ती
सर्वांगांनी बहरू दे
शाखा-शाखांवर भगवद्ध्वज
युवाबळाने लहरू दे

शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है

शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है ॥धृ॥
प्रेम जो केवल समर्पण भाव को ही जानत है
और उसमे ही स्वयम् की धन्यता बस मानता है
दिव्य ऐसे प्रेम मे ईश्वर स्वयम् साकार है ॥१॥
विश्व जननी ने किया वात्सल्य से पालन हमारा
है कृपा इसकी मिला है प्राण तन जीवन हमारा
भक्ति से हम हो समर्पित बस यही अधिकार है ॥२॥
जाती भाषा प्रान्त आदी वर्ग भेदों को मिटाने
दूर अर्थाभाव करने तम अविद्या को हटाने
नित्य ज्योतिर्मय हमारा हृदय स्नेहागार है ॥३॥
कोटि आँखो से निरन्तर आज आँसू बह रहे है
आज अनगिन बन्धु दुःसह यातनाए सह रहे है
दुख हरे सुख दे सभी को एक यह आचार है ॥४॥

वंदे त्वां भूदेवीम् आर्य मातरम्

वंदे त्वां भूदेवीम् आर्य मातरम्
जयतु जयतु पदयुगलम् ते निरन्तरम्
वंदे मातरम् ॥

शुभ्र-शरच्चंद्र-युक्त-चारु यामिनीम्
विकसित-नव-कुसुम-मृदुल-दाम शोभिनीम्
मंदस्मितयुक्त-वदन मधुर भाशिणीम्
सुजलाम् सुफलाम् सरलाम्
शिव-वरदाम् चिर-सुखदाम्
मुकुलरदाम् आर्य मातरम् ॥

हिम-नगजाम् स्वाभिमान-बुद्धि दायिनीम्
सह-पृतनाम् अमित-भुजाम्-तनय तारिणीम्
अमितामित-कोटि-कंठ-जय निनादिनीम्
कमलाम् अमलाम् अतुलाम्
बल-करणीम् रिपु-हरणीम्
मद-दमनीम् आर्य मातरम् ॥

धर्मस्त्वम् शर्म-त्वं त्वं यशोबलम्
शक्तिस्त्वं भक्तिस्त्वं कर्म-चाखिलम्
प्रति सदनं प्रति माते त्वं महा फलम्
धरणीम् भरणीम् जननीम्
कवि प्रतिभाम् मति सुलाभाम्
जगदम्बा राष्ट्र मातरम् ॥

अंतर्मन के भाव संजोकर राष्ट्रदेव का ध्यान करें

अंतर्मन के भाव संजोकर
राष्ट्रदेव का ध्यान करें।
अपना तन-मन अपना जीवन
इस वेदी पर दान करें॥

जिसकी रक्षा करने को ही
देवों के अवतार हुए।
जिसके पावन कर्म देवता
संस्कृति के आधार हुए।
जिसकी पूजा की वीरों ने
सदियों अपने प्राणों से।
माँ बहिनों ने शिशु बालों ने
निज अनुपम बलिदानों से।
इसको अजर अमर करने को
फिर सशक्त बलवान बनें॥१॥

सबसे उर्वर इसकी धरती
सबसे शुचि इसका पानी।
अन्नपूर्णा लक्ष्मी है यह
सिंह वाहिनी मर्दानी।
विविध अन्न फल फूल यहाँ पर
उगते आये सदा अपार।
स्वर्ण रजत हीर मोती की
यह वसुधा अक्षय आगार।
अपने श्रम अपने उद्यम से
फिर इसको धनवान करें॥२॥

ऊँच-नीच के भेद भुला
भाई -भाई सब एक रहें।
अनुशासन से ह्रदय सींचकर
पौरुष के अतिरेक बनें।
राष्ट्र हेतु सर्वस्व समर्पण
को जनमन तैयार रहे।
ह्रदय-ह्रदय से राष्ट्र भक्ति की
बहती अविरल धार रहे।
संगठनों से सारे जग में
फिर इसको छविमान करें॥३॥

बढते जाते देखो हम बढते ही जाते

बढते जाते देखो

बढते जाते देखो हम बढते ही जाते ॥धृ॥
उज्वलतर उज्वलतम होती है
महासंघटन की ज्वाला
प्रतिपल बडती ही जाती है
चंडी के मुंडों की माला
येह नागपुर से लगी आग
ज्योतित भारत मा का सुहाग
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम
दिश दिश गूंजा संघटण राग
केशव के जीवन का पराग
अंतस्थल की अवृद्ध आग
भगवा ध्वज का संदेश त्याग
वन विजनकान्त नगरीय शान्त
पंजाब सिंधु संयुक्त प्रांत
केरल कर्नाटक और बिहार
कर पार चला संघटन राग॥१॥
हिन्दु हिन्दु मिलते जाते....
यह माधव अथवा महादेव ने
जटा जूट में धारण कर
मस्तक पर धर झर झर नीर्झर
आप्लावित तन मन प्राण प्राण
हिन्दु ने नीज को पेहचाना
कर्तव्य कर्म शर सन्धाना
है ध्येय दूर संसार क्रूर मद मत्त चूर
पथ भरा शूल जीवन दुकूल
जननी के पग की तनीक धूल
माथे पर ले चल दिये सब मद माते ॥२॥

जिसकी अविचल धर्मभावना

जिसकी अविचल धर्मभावना

जिसकी अविचल धर्मभावना
अविरत चलती कर्मसाधना
भक्ति ज्ञान श्रद्धा की सरिता
वही समझलो सात्विक कर्ता ||
क्षमाशील जो जग अनुरागी
सबमें रहकर भी वीतरागी
जिसमें साहस और निर्भयता
वही समझलो सात्विक कर्ता ||
तत्वनिष्ठ  फिर भी व्यवहारी
जिसकी हर कृति सबसे न्यारी
यश अपयश में स्थितप्रज्ञता 
वही समझलो सात्विक कर्ता ||
सिर पर बर्फ ह्रुदय मर चिंगारी
सत्य शुद्ध समतोल विचारी
सेवा धर्म नीरत नीत रहता
वही समझलो सात्विक कर्ता ||
जिसकी अनुपम धैर्य धारणा
जिससे मिलती स्वयं प्रेरणा
मृत में भी अमृत जो भरता
वही समझलो सात्विक कर्ता ||
ह्रुदय भावमय कष्टीक काया
दीनों के प्रति माँ सी माया
जिसने षड – रिपु – ओं को जीता
वही समझलो सात्विक कर्ता ||
सात्विक तेज स्वजन मन जीता
दुर्जन दोष गरल सम पीता
मुख मंडल पर सहज मधुरता
वही समझलो सात्विक कर्ता ||
मुक्त सङ् जो निर्हन्कारि
मुक्त गगन के जो संचारी
सब कुछ कर जो रहे अकरता
वही समझलो सात्विक कर्ता ||

करी बांधु या पवित्र कंकण

करी बांधु या पवित्र कंकण

करी बांधु या पवित्र कंकण॥ धृ॥
इतिहासाच्या पानोपानी
पुर्व दिव्य ते बसले लपुनी
रम्य भविष्याची त्यामधुनी
भव्य मंदिर पुनश्च उभवुन॥१॥
निजरुधिराची अर्घ्ये अर्पुन
ज्यांनी केले स्वराष्ट्रपूजन
कॄतज्ञतेने तयांस वंदुन
कर्तव्याचे करु जागरण॥२॥
स्वार्थाचे ओलांडुन कुंपण
व्यक्तित्वाचा कोषहि फोडुन
विसरुन अवघे अपुले मीपण
विराट साक्षात्कार जागवुन॥३॥
जो हिंदू तो अवघा माझा
घोष एक हा फिरुन गर्जा
मुक्तिमार्ग हा एकच समजा
अन् सर्वाना द्या समजावुन॥४॥
ध्वजराजाला साक्ष ठेवुनी
आज बोलु या निश्चयवाणी
शुभसंकल्पा हीच पर्वणी
राहिल निष्ठा उरी चिरंतन॥५॥

यापुढे यशाकडे अखंड झेप घ्यायची

यापुढे यशाकडे

यापुढे यशाकडे अखंड झेप घ्यायची
अखंड झेप घ्यायची॥धृ॥
माणसेच ना आम्ही क्वचित् काली शिरायचा
राखुनी परी विवेक कलह आवरायचा
शत्रुला प्रवेशण्या कधी अशा न संधी द्यायची॥१॥
बैसता प्रहार शत्रु करितसे गयावया
संधी साधुनी परंतु शब्द मोडी लीलया
शत्रुची कधी अशा पुन्हा न गय करायची॥२॥
ओठी पंचशील आणि द्यावया निघे मिठी
चीन दुष्ट लावितो गळ्यास तांत शेवटी
या अशा नराधमास ना क्षमा मिळायची॥३॥
संकटे असंख्य हीच पौरुषास पर्वणी
वाटते जयास धन्य धन्य तेच अग्रणी
ना कधी पुन्हा अशी सुवर्ण संधी यायची॥४॥
अंतरात विमलभक्ति मातृभक्तिची वसे
राष्ट्र तरिच शुध्द चरित नित्य सिध्द होतसे
वैभवार्थ शक्तिची उपासना करायची॥५॥
जगरुकतेविना स्वतंत्रता नती टिके
मुक्त राष्ट्रही ठरे पराक्रमाविना फिके
शौर्य धैर्य प्रगटताच दुदुंभी झडायची॥६॥

यह कल कल छल छल बहती

यह कल कल

यह कल कल छल छल बहती
क्या कहती गंगा धारा ?
युग युग से बहता आता
यह पुण्य प्रवाह हमारा ।धृ|
हम ईसके लघुतम जलकण
बनते मिटते है क्षण क्षण
अपना अस्तित्व मिटाकर
तन मन धन करते अर्पण
बढते जाने का शुभ प्रण
प्राणों से हमको प्यारा ।१|
ईस धारा में घुल मिलकर
वीरों की राख बही है
ईस धारामें कितने ही
ऋषियों ने शरण ग्रही है
ईस धाराकी गोदि में,
खेला ईतिहास हमारा ।२|
यह अविरल तप का फल है
यह राष्ट्रप्रवाह प्रबल है
शुभ संस्कृति का परिचायक
भारत मां का आंचल है
हिंदुकी चिरजीवन
मर्यादा धर्म सहारा ।३|
क्या ईसको रोख सकेंगे
मिटनेवाले मिट जायें
कंकड पत्थर की हस्ती
क्या बाधा बनकर आये
ढह जायेंगे गिरि पर्वत कांपे
भूमंडल सारा ।४|

समाजजीवन भारुनी टाकू चैतन्याने मानाने

समाजजीवन भारुनी टाकू
चैतन्याने मानाने
वैभवशाली भवितव्याला
नटवू निज कर्तृत्त्वाने
नटवू निज कर्तृत्त्वाने....

दश शतकांचे दैन्य टाकुनी
जागृत करूया जनशक्ती
पराक्रमाची अन प्रतिभेची
जगास दावू अभिव्यक्ती
राष्ट्रपुरुष हा सुदृढ करूया
पुन्हा एकदा यत्नाने
नटवू निज कर्तृत्त्वाने
नटवू निज कर्तृत्त्वाने ....

सागरलाटा रोज सांगती
नव्या युगाची आव्हाने
गिरीशिखरातुनी ऐकू येती
मायभूमीची जयगाणे
ती आव्हाने पेलायला
उभे राहूया ऐक्याने
नटवू निज कर्तृत्त्वाने
नटवू निज कर्तृत्त्वाने ....

परिश्रमाचा सेतू बांधू
संघटनेच्या दलभारे
नको कुणाची कृपा आपणा
आक्रमू धरती नभ सारे
व्यक्ती व्यक्तीच्या कर्तृत्वाला
उधाण आणू सहजपणे
नटवू निज कर्तृत्त्वाने
नटवू निज कर्तृत्त्वाने .....

भेदभावना भिंती पाडू
समतेची गाथा गाऊ
उच्चनिचता गाडूनी टाकू
नवीन दिशा नव गती घेऊ
कलीकालावरी मात करूया
तेज भारल्या भक्तीने
नटवू निज कर्तृत्त्वाने
नटवू निज कर्तृत्त्वाने .....

समाजजीवन भारुनी टाकू
चैतन्याने मानाने
वैभवशाली भवितव्याला
नटवू निज कर्तृत्त्वाने
नटवू निज कर्तृत्त्वाने....

स्वतंत्रता को सार्थक करने

स्वतंत्रता को सार्थक

स्वतंत्रता को सार्थक करने
शक्ति का आधार चाहिए।
भक्ति का आधार चाहिए॥
स्वर्गगंगा भी अरे भगीरथ
यत्नो से भूतल पर आती।
किन्तु शीश पर धारण करने
शिवशंकर की शक्ति चाहिए॥१॥
अमृत को भी लज्जित करती
समर्थ होकर प्राकृत वाणी
उन्मेषित करने सौरभ को
तुलसी की रे भक्ति चाहिए॥२॥
शीश कटाकर देह लड़ी थी
कौंडाणा पर गाज गिरी थी
कण-कण में चेतनता भरने
छत्रपती की स्फूर्ति चाहिए॥३॥
हिमगिरि शिखरों के कन्दर में
घुसे पड़े जो नाग भूमि में
उन सर्पों का मर्दन करने
कालियान्त की नीति चाहिए॥४॥

विश्वहितं ते चरितं नीतिनिधानम्

*शिवराजः*

विश्वहितं ते चरितं नीतिनिधानम्।

त्वां नमामि शिवनृपाल! संततं स्मरामि ते।।
विशुद्धशील! अखिलविश्ववंद्य- भूपते!

त्वं जनपदसंस्कर्ता
त्वं जनगणधीदाता
गोद्विजपरिपालकशिवसाधूनां त्वं त्राता
त्वाम् अभिजनमार्तानां बांधवमतिदीनानां
श्रीशिवनृपवर्य! भजति मे हृदयम्

राष्ट्रमिदं दुष्टाभिहतं
क्षीणबलं येनोत्थापीतमखिलं
तं प्रबलं वीरप्रवरं
भूपवरं चिंतये

हे जगदभिराम! दुष्टखलविराम!
पुरीतशुभकाम! पुण्यचरितधाम!
देवपरमवीर! शत्रुशमनधीर!
विश्वहितं ते चरितं नीतिनिधानम्

|| प्रभो शिवाजी राजा || भारतमाता की जय ||

धर्मव्रतीनो धर्मरक्षण्या सिद्ध अता व्हा रे

धर्मव्रतीनो धर्मरक्षण्या सिद्ध अता व्हा रे।
धर्मसंगरी पराक्रमाची शर्थ करु या रे।।
मायावी कुणी मारिच येथे रूप विविध घेऊनि
सभोवताली चालू आहे नर्तन सैतानी
शील सतीचे रक्षण करण्या वीरव्रती या रे।।१।।
रूप मनोहर बाह्य दिसे जरी अंतरंग काळे
भारतभूला नष्ट कराया कुटिल भ्रष्ट चाळे
धर्मक्षेत्री या सावध राहुन स्थितप्रज्ञ व्हा रे।।२।।
मानवतेच्या कल्याणाचा दिला मार्ग ऋषींनी
सत्य न्याय अन् समतेचा हा संघमंत्र गाऊनि
ऋषीमुनिंचे संतांचे अम्ही पुत्र जाणुया रे।।३।।
धर्म कोणता अधर्म तोही समजुनिया घेऊ
हिन्दु अम्ही अन् हिन्दुत्वाला उमजुनिया घेऊ
धर्मजागरण घडता होईल रामराज्य सारे।।४।।
उपेक्षित कुणी वंचित कोणी दलित कुणीही नाही
एक मातृभू एक पुण्यभू अमृतसुत आम्ही
नव्या युगाचा नवा धर्म हा जगी गर्जुया रे।।५।।

माते तुझ्याच चिंतनी चित्त नित्य राहुदे

माते तुझ्याच चिंतनी चित्त नित्य राहुदे
कोटी कोटी कंठ हे तुझेच गीत गाऊदे

तूच देवता आम्हा धारणा मनी तुझी
ध्येयमंदिरात या मूर्ती दिव्य ही तुझी
रूप हेच लोचणी असेच नित्य राहुदे
कोटी कोटी कंठ हे तुझेच गीत गाऊदे

तुझ्याच भक्तीचा सुगंध अंतरात दरवळे
कीर्ती दुंदुभी जगी निनादते तुझ्या बळे
अजेय शक्ती दे आम्हा ध्येय धुंद होऊदे
कोटी कोटी कंठ हे तुझेच गीत गाऊदे

ब्रम्हतेज जागवी दशदिशा प्रकाशु दे
अंध:कार वेधूनी ज्ञानसूर्य पाहुदे
मोह तिमिर छेदूनी कर्मयोग उजळू दे
कोटी कोटी कंठ हे तुझेच गीत गाऊदे

असुरमर्दिनी जगी धरती धात्री तू आम्हा
अमरता नको मुळी मृत्यूची नसे तमा
नष्ट देह हो जरी फिरुनी उदरी जन्म दे
कोटी कोटी कंठ हे तुझेच गीत गाऊदे

माते तुझ्याच चिंतनी चित्त नित्य राहुदे
कोटी कोटी कंठ हे तुझेच गीत गाऊदे

|| जयतू हिंदुराष्ट्रम् || प्रभो शिवाजी राजा ||

देव यह आशीष

देव यह आशीष

देव यह आशीष शुभ दो ॥
चल सकें बाधा अनेकों।
मातृ-पद में लीन तन-मन
भावना विकसित वरण दो
देव यह आशीष शुभ दो ॥१॥
क्षुद्र जग की वासनाएँ
स्वार्थ मूलक भावनाएँ
दूर हों जीवन सफल हो
बस यही गति यही मति दो॥
देव यही आशीष शुभ दो ॥२॥
मातृ-सेवा के व्रती हम
निज बनें सबको बनायें।
देश का सौभाग्य जागे
सिध्द वह संजीवनी दो॥
देव यह आशीष शुभ दो ॥३॥

देव यह आशीष

देव यह आशीष

देव यह आशीष शुभ दो ॥
चल सकें बाधा अनेकों।
मातृ-पद में लीन तन-मन
भावना विकसित वरण दो
देव यह आशीष शुभ दो ॥१॥
क्षुद्र जग की वासनाएँ
स्वार्थ मूलक भावनाएँ
दूर हों जीवन सफल हो
बस यही गति यही मति दो॥
देव यही आशीष शुभ दो ॥२॥
मातृ-सेवा के व्रती हम
निज बनें सबको बनायें।
देश का सौभाग्य जागे
सिध्द वह संजीवनी दो॥
देव यह आशीष शुभ दो ॥३॥

ज्यांची दृष्टी कधी न कष्टी निर्भयतेची करिते वृष्टी

ज्यांची दृष्टी कधी न कष्टी निर्भयतेची करिते वृष्टी
मनात ज्यांच्या नित्य तरंगे भवितव्याची सुंदर सृष्टी॥१॥

क्षितिजे अभिनव गाठायाते पडते ज्यांचे पुढती पाउल
असे बनू या निश्चय करुनी परिस्थितीचि घेउनि चाहूल॥२॥

माणुसकीचे घडता दर्शन उदात्ततेचे करु या वर्तन
सर्प कलिया ग्रासू बघता फणेवरी करु तांडव नर्तन॥३॥

ज्या दृष्टीतुनि सौजन्याचे मधुर चांदणे नित्य पडावे
तीच दृष्टी दुष्टावर वळता तये भयाने दूर पळावे॥४॥

ममतेने जो हात फिरावा पददलितांच्या पाठीवरती
पशुता दुसता तोच हात क्षणि दृढ वज्राची व्हावी मुष्टी॥५॥

शांत मनाने टीका निंदा स्वकीय म्हणुनी घेतो ऐकुनि
परक्यांनी परि उणे बोलता ज्वालामुखि जणू उसळू भडकुनि॥६॥

हीच आमुची होती नीती अनुसरताही पुढती रीती
कोण शके मग रोधायाला अप्रतिहत ही अमुची प्रगती॥७॥

प्रभुत्व सार्या पृथ्वी वरती या देशाचे माणुसकीचे
स्थापित व्हावे हा ईर्ष्येने पाउल पुढती टाकायाचे॥८॥

झाला निश्चय झाला निश्चय जीवन सारे या ध्येयास्तव
अति बलशाली अखंड भारत स्वप्न सुमंगल करु हे वास्तव॥९॥

झाला निश्चय कठोर निश्चय लक्ष लक्ष नव ह्रदयांमधुनी
पराक्रमाने प्रिय भगवा ध्वज अखंड ठेवू डोलत गगनी॥

ध्येय पथावर सतत चालतो वीरव्रती आम्ही

ध्येय पथावर सतत चालतो वीरव्रती आम्ही
वैभवशाली भरतभूमीला ध्यातो अंतरयामी ।।

प्रतिदिन आमुची शक्तिसाधना गुरूवर ध्वज भगवा
वादळातही खडतर मार्गी तेवत ज्ञान दिवा
सत्चारित्रे क्षण क्षण लावू भगवंताच्या कामी ।।

चित्तामध्ये चिंतन करूया का आम्ही हरलो
ऋषीमुनींच्या देशामध्ये हीनदीन झालो
आजपुन्हा तो वन्ही चेतवू उजळू ज्योतीतमी ।।

कुणी न मोठा नाही छोटा आम्ही सारे बंधू
जाती पंथ भाषा पक्षातून आम्ही सगळे हिंदू
श्रेष्ठ आमुचे पूर्वज आम्हा हीच पूण्यभूमी ।।

बंधू-बंधू हे विकसित करूनी एकसूत्री बांधुनी
उदात्तमंगल ते ते घडवू हीन सर्व जाळुनी
तेजोपासक अमृतसूत आम्ही पुरूषार्थी विक्रमी ।।

हिन्दूजनांची सज्जनशक्ती सर्वांगांनी बहरू दे

हिन्दूजनांची सज्जनशक्ती
सर्वांगांनी बहरू दे
शाखा-शाखांवर भगवद्ध्वज
युवाबळाने लहरू दे

समजत नाही इतिहासातील
सुवर्णयुग सरले कैसे
उदासीनता मतभेदांचे
दुर्गुण हे शिरले कैसे
उपेक्षिली समता ममता तर
लुटती परके समजू दे
शाखा-शाखांवर भगवद्ध्वज
युवाबळाने लहरू दे

जे नशिबाचे गुलाम त्यांच्या
ऐहिक उर्मी मावळती
खड्ग येथले परास्त होई
उदिम व्यापारा गळती
उद्यम व्यापारांचे वैभव
जनामनान्ततरी पसरू दे
शाखा-शाखांवर भगवद्ध्वज
युवाबळाने लहरू दे

हिन्दू सोशिक आणि समंजस
सात्विकता त्यांची वृत्ती
आक्रमकांच्या हिंस्र चढ़ाया
रोखन्यास अपुरे पड़ती
सत्वापाठी क्षात्रबळाचे
संघकवचही संचरू दे
शाखा-शाखांवर भगवद्ध्वज
युवाबळाने लहरू दे

दुनिया बळवंतांची अंकीत
बळ युवकांचे यशदायी
निःस्पृह सज्जन एकवटावे
तर वैभव दुष्कर नाही
जगज्जयी भारतभूमिचे
स्वप्न अंतरी उतरु दे
शाखा-शाखांवर भगवद्ध्वज
युवाबळाने लहरू दे

हिन्दूजनांची सज्जनशक्ती
सर्वांगांनी बहरू दे
शाखा-शाखांवर भगवद्ध्वज
युवाबळाने लहरू दे

चला निघु या सरसावोनी देशाच्या उध्दरणी

चला निघु या सरसावोनी

चला निघु या सरसावोनी
देशाच्या उध्दरणी॥ धृ ॥
विसकटलेले अवघे जीवन
खंत जयांना याची
पडती स्वप्ने उत्थानाची
उज्ज्वल भवितव्याची
जागरुक अभिमानी असले
असती जे जे कोणी॥१॥
उधानलेल्या जलधीसंगे
यावा झंझावात
तशी देउनी पराक्रमाला
अभिमानाची साथ
परक्यांची या टाकू पुसुनी
येथिल नावनिशाणी॥२॥
त्रिखंडात दुमदुमुनी जावी
जरि राष्ट्राची कीर्ती
कार्यमग्नता जीवन व्हावे
मृत्यू ही विश्रांती
भेद विरावे स्फुरण चढावे
नवशुभ आकांक्षांनी॥३॥
ईर्ष्या अमुची कधी नसावी
क्षणिक पुराचे पाणी
कसे व्हायचे अशी नसावी
खचलेली जनवाणी
हासत जावे काट्यावरुनी
तरुणांनि अनवाणी॥४॥
उठता आपण नमतिल विघ्ने
महाभयंकर आता
काय न केला आपण मर्दन
तुंग हिमाचल माथा?
विलंब का मग आणु वैभव
लीलेने जिंकोनी॥५॥

युग परिवर्तन करने

युग परिवर्तन करने

युग परिवर्तन करने को अब
ध्येय  मार्ग पर चलना है ।
विश्व पटल पर भरत माँ का,
फिर से शौर्य दिखाना है,
फिर से शौर्य दिखाना है ||
समय चलेगा अपने ढंग से,
अविचल गती अपनाना  है,
ग्राम नगर और डगर डगर में,
भक्ती भाव प्रकटाना है,
हृदय धरा पर भारत मा का ,
उज्वल चित्र बनाना है,
उज्वल चित्र बनाना है,||
कुरुक्षेत्र में गीत सुन जो ,
अर्जुन थेकटी बद्ध हुए,
षख स्थल पर उसि रीत से
नव भारत निर्माण करें
स्नेह भरे भावों से पुनरपि
अर्पण भाव जगान है,
अर्पण भाव जगाना है ||
केशव माधव के स्वप्नों को
पूर कर दिखलना है,
संघ शक्ती के द्वारा जग को ।
दर्शन भव्य कराना है,
हिन्दु और हिन्दुत्व भाव से
भगवा ध्वज फहेराना है,
भगवा ध्वज फहेराना है, । ||

रामलला का ध्यान करो मंदिर का निर्माण करो

*राम मंदिर उभारणी अभियान गीत*

रामलला का ध्यान करो, मंदिर का निर्माण करो।
मंदिर का निर्माण करो,
अवधपुरी अभियान करो।
श्री राम जय राम जय जय राम,
श्री राम जय राम जय जय राम।।धृ।।

प्रथम कारसेवामें हमनें, भगवा ध्वज लहराया था।
अपमान सहे बलिदान दिये,
पर पिछे पग न हटाया था।
संतो ने अवहान किया,
फिर हमने अभियान किया।
घोर गुलामी के कलंक को,
प्रभुने स्वयं हटाया था,
रामललाने हटाया था।
रामललाने हटाया था,
माध्यम हमें बनाया था।।१।।

राम नाम ही सृजन कर्ता,
राम नामसे पालन हो।
राम नामसे पथ्थर तैरे,
नाम शक्तिसे राम झुके।
राम विरोधी कोई हो,
असूर शक्ति संजोई हो।
विश्व नियंता राम नाम है,
नाम शक्ति संधान करो।
नाम बाण संधान करो,
नाम बाण संधान करो,
जनशक्ति अव्हान करो।।२

त्रेतायुगमे युवा रामने,
दिर्घकाल वनवास किया।
कलियुगमे अब रामललाने,
पर्णकुटीमे वास किया।
रामलला तो बैठे है,
संतोंसे यह कहते है।
मंदिर भव्य बनाओ फिरसे,
हिन्दू राष्ट्र निर्माण करो।
हिन्दू राष्ट्र निर्माण करो,
रामराज्य निर्माण करो।।३।।